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बिहार के विकास का चर्चा पुरे देश में हो रहा है .कई लोगो ने माना है बिहार का तस्वीर बदला है , लेकिन यह भी एक हकीकत है कि बिहार के 77 फीसदी से ज्यादा घरों में अब भी शौचालय नहीं है.
यह आंकड़ा बिहार के विकास की हकीकत को बयां कर रहा है. सरकार ने हालांकि इस ओर पहल करते हुए घर-घर शौचालय निर्माण का अभियान चलाया है और मुखिया या जनप्रतिनिधियों को चुनाव लड़ने के लिए घरों में शौचालय निर्माण को अनिवार्य कर दिया गया है.सरकार ने इस तरह के कई कदम उठाया ,इसके बावजूद भी ग्रामीण इलाके के कई घर शौचालय वंचित है आखिर क्यों ? ऐसा नहीं कि शौचालय को लेकर लोगों में जागरुकता नहीं है. बिहार में महिलाएं शौचालय को लेकर ज्यादा जागरुक हुई हैं और वे अब ऐसे घरों में ब्याह करना ही नहीं जाना चाहतीं, जिस घर में शौचालय नहीं है.यहाँ तक सरकार ने यह योजना बना रखा है जिन पंचायतों में सभी घरों में शौचालय होगा, उसे निर्मल ग्राम पुरस्कार दिया जाएगा तथा जिन प्रखंडों में शत-प्रतिशत घरों में शौचालय निर्माण होगा. उसे निर्मल प्रखंड पुरस्कार दिया जाएगा. ऐसे प्रखंडों को 25 लाख रुपये दिए जाएंगे. इन सारी योजना के बावजूद भी सभी के घरो में शौचालय का निर्माण क्यों नहीं हो पा रहा है । जरूरत है समाज के सभी लोगो को जागरूक होने का तभी हम सवच्छ निर्मल विहार बना पाएंगे ।
-विकाश कुमार मौर्य

एक समय था जब लड़की पैदा होती थी, तब हम कहते थे कि लक्ष्मी का आगमन हुआँ है। लेकिन आज वक्त बदल गया है। आज के समय में तो अधिकतर लोग लड़की को तो पैदा ही नहीं होने देना चाहते है और अगर किसी माँ कि हिम्मत की बजह से कोई लड़की पैदा हो भी जाती है तो लोग उसे ना जाने किन किन गिरे हुए नामों से बुलाते है। हमे यह कहने मे भी शर्म आती है।हमारा समाज यह क्यो भुलते जा रहा है कि,हमारा अस्तित्व भी आज किसी लड़की के बदौलत ही है। यही बजह है कि प्रति 1000 लड़को पर मात्र 933 लड़कियाँ ही बच गई है और लड़कियों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती ही जा रही है। आखिर हमारा समाज लड़कियों के साथ ही भेदभाव क्यों कर रहा है? लड़कियों को भी जीने का हक है। दूनियाँ आज चाँद पर पहुँच चूँकि है। और हमारा देश बहुत तेज़ी से विकास कर रहा है। विज्ञान ने हमें एक से एक नई तकनीक दी है। लेकिन फिर भी हमारी मानसिकता वही की वही है। हम आज भी लड़कियों को बोझ समझते है। उसे पढाते-लिखाते नहीं है क्योंकि हमारी मानसिकता बन चुँकि है की उसे तो एक दिन चौका-बर्तन ही करना है। लेकिन हम यह क्यो भुल रहे है कि लड़कियाँ भी आज लड़को के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। हमारे देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल वह भी तो एक लड़की ही थी। आज सारी लड़कियों के लिए वह एक मिशाल है। जब एक लड़की राष्ट्रपति बन सकती है तब फिर भेदभाव क्यों? हमें अपनी सोच को बदलना होगा तभी समाज बदलेगा। शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी 

घर हो या बाहर हमेशा महिला को ही गलत कहा जाता है.सब लोग गलत नजर से देखते है नारी के प्रती बिल्कुल गलत नजरिया रखते है लोग .समय बदल गया है लेकिन पुरूषोँ की मानसिकता अभी भी नही बदली है. सडक पर कोई घटना घटित हो जाये तो सबसे पहले महिलाओँ के चरित्र पर ही सवाल उठाये जाते हैँ . कार्यस्थल पर अगर कोई महिला सहिला सहकर्मी उत्पीडन की शिकायत करती है तो उसे ही शक की निगाहोँ से देखा जाने लगता है . जन्म से ही लडकियोँ को मर्यादा मेँ रहने की सीख दी जाती है । इसके खिलाफ अगर महिला आवाज उठाती है तो उसे ही गुनहगार मान लिया जाता है । इन सब के बावजुद महिलाएं हर क्षेत्र मेँ अच्छा प्रदर्शन कर रही है । अब समाज को भी अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है तभी हम एक सुन्दर समाज बना सकते है

भारतीय संविधान मेँ जिस धर्मनिरपेक्षता शब्द की व्याख्या है उसका मूल अर्थ सर्व धर्म समभाव के रूप मे ग्रहण किया गया था . अंगरेजों ने हमारे देश को एक बार बाटा ,लेकिन हमारे ये स्वधोषित धर्मनिरपेक्ष राजनेता हर रोज इस गौरवमयी राष्ट्र को बांट रहे हैं . क्या आज अल्पसंख्योकोँ के क्लयाण के नाम पर ओछी राजनीति एक अच्छे भले सद्भावपुर्ण वातावरण को समाप्त करने का काम नही कर रही है ? अब वो समय आ गया है जब इसतरह की तुष्टीकरण से अल्यसंख्यक समुदाय के लोगों को सोचने पर मजबूर होना चाहिए कि क्या उन्हेँ सिर्फ वोट बैंक बन कर रहना है या सम्मानित नागरिक . स्वघोषित धर्मनिरपेक्ष दलोँ को भी देश की जनता को बताना होगा की आखिर कब तक तुष्टीकरण की राजनीति के नाम पर देश हित सुली पर लटकता रहेगा ? धर्मनिरपेक्षता की आड मे ओछी राजनीति करनेवाले राजनीतिज्ञ हजारो वर्ष पुरानी सभ्यता को मिटाने का पड्यंत्र रच रहे है

फेसबुक बनाने वालेँ ने भी कभी नही सोचा होगा कि इस सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए भी कई गलत काम हो सकता है । आंकडो के मुताबित देखेँ तो आज सेक्स रिलेटेड क्राइम मे सोशल नेटर्किंग साइट भी अहम रोल अदा कर रहा है । आज कल फेक अइडेंटिटी के जरिए एक दुसरे के करिब आना और फिर उनकी पर्सनल लाईफ के महत्वपुर्ण पहलुओँ और तस्वीरोँ को फेसबुक पर डाल देना आम बात हो गई है । कुछ मामलोँ मेँ तो साइबर सेल की सक्रियता के कारण तो अपराधी पकड लिए जाते है .लेकीन ज्यादातर मामलोँ मेँ अपराधी पकड से दुर हो जाते है । वही , बदनाम होने के डर से पीडित भी खुद को दुनिया के सामने नही आते ।नतिजा ऐसे अपराधियोँ का हौशला बढता जाता है और फिर नए शिकार की तलाश मे लग जाते है । कहने का मतलब ऐ है की इंटरनेट के इस्तमाल मेँ हमे सर्तक रहने की जरुरत है .सोशल नेटवर्किंग साइट हो या फिर अन्य मीडियम इंटरनेट पर फ्रेँडसिप करने से पहले हमेँ दुसरे व्यक्ति का प्रोफाइल की पूरी जानकारी होनी चाहिए । पर्सनल लाइफ की महत्वपुर्ण चीँजो को खुलासा करने से पहले भी हमेँ सर्तक रहना चाहिए ।इसके बावजुद भी अगर आप साइबर क्राइम के शिकार हो गए हो तो सइबर सेल का मदद लेँ .

किसी भी धार्मिक संप्रदाय का जन्म ईश्वर की प्राप्ति के एक मार्ग के रूप में होता है. मगर आदमी अपनी कलुषता के कारण अपने सम्प्रदाय अथवा धर्म को दंगे जैसे कृत्य से कलंकित करने का गुनाह करता है. मेरे कुछ सबसे अच्छे दोस्त मुस्लिम हैं और मैं कभी उनका अहित सोच भी नहीं सकता और वे भी मेरे लिए हर त्याग करने को सदा तत्पर रहते हैं. ………… प्रशासन को चाहिए की दंगाइयों को अपराधी मानते हुवे उन्हें शीघ्र नियंत्रित करे.हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दंगे में जिनका खून बहता है वे सभी अमूमन निर्दोष लोग ही होते हैं. दंगो में बच्चे, बूढ़े और दूध पिलाती महिलाएं हिंसा की ग्रास बनती हैं. और किसी निर्दोष का लहू बहाना किसी भी धर्म में पाप हीं बताया गया है. सिर्फ इसलिए की कोई व्यक्ति दुसरे धर्म का है, हम उसकी हत्या कर दें यह कहाँ का इन्साफ हो सकता है ?  सभी से मेरा यही निवेदन है कि कोई भी दंगा में शामिल न हो तथा यदि कोई दंगा फैला रहा है तो उसे आप पूरी ताकत से रोकें।  एक दंगाई न तो हिन्दू होता है, न मुसलमान होता है, उसकी अवस्था एक पागल कुत्ते की हो जाती है जो मानवता को काट खाने के लिए दौड़ता है.
ज्यादातर लोगोँ को लगता है कि जबसे इंटरनेट और फेसबुक का जमाना आया है , तबसे किताबोँ की वकत कम हो गयी है , लेकिन किताबोँ का तो अपना ही मजा है . अपनी ही सहूलियत है . और अपने ही लाभ भी है . किताबे सिर्फ जानकारी नही देती ,किताबे सिर्फ मनोरंजन नही करती . वे सांस्कारित भी करती है , जीने का सलीका भी सिखाती है और रिश्ते के मर्म को महसूसने की अदा भी .इसलिए किताबोँ की वकत कभी भी कम न होगा . वे हमेशा प्रासंगिक बनी रहेँगी और बेहतर समाज के निर्माण के लिए मानवीयता को प्रेरित करती है रहेंगी .गांधी जी कहा करते थे  ,अ हाउस विदाउट बुक इज  अ हाउस विदाउट विंडो . किताबेँ आपको सोचने और समझने को प्रेरित करती है . मनुष्य मेँ रचनात्मक का बोध तो किताबेँ ही पैदा कर सकती हैँ .विविधतापूर्ण संसार को समझने व जानने का बेहतर जरिया किताबेँ ही है .
मेरे ब्लाग पर आप सबका हार्दिक स्वागत है, शीघ्र ही नयी पोस्ट प्रस्तुत करुंगा साहित्‍य और संगीत दोनों ही आत्‍मा को शुद्ध करते हैं, आपको अनुशासित रखते हैं और आपको भावनात्‍मक रूप से मजबूती भी प्रदान करते हैं । आइए, ऐसे ही कुछ विचार मेरे साथ बांट कर देखिए, अच्‍छा लगे तो ठीक, अच्‍छा न लगे तो आपकी इच्‍छा ।